कर्णपूरण क्या होता है ?
कर्ण (कान) ,पूरण(भरना )इसमें हम कान में औषधि युक्त तेल भरते है जिससे बहुत सारे लाभ होते है ,इसको सावधानी के साथ किया जाता है आयुर्वेद में शरीर पर तेल लगाना या तेल से मालिश करना जिसे अभ्यंग कहा गया है, और आयुर्वेद में इसका बहुत महत्व बताया गया है ,और हमें हर दिन अभ्यंग करना चाहिए ,अगर पूरे शरीर पर अभ्यंग नहीं कर सकते तो शरीर के कुछ स्थान ऐसे है ( सिर ,कान और पेरो के तलवो) जहा अभ्यंग करने से बहुत लाभ मिलता है , अभ्यंग से युवा अवस्था देर तक बनी रहती है बुढ़ापा देर से आता है ,आँखों की रौशनी भी अच्छी बनी रहती है और सभी इन्द्रिया स्वस्थ रहती है जिन लोगो के कान से स्राव होता हो,पानी बहता हो या कान में वैक्स जमा हो उनको कर्ण पूरण नहीं करना चाहिए।
कर्ण पूरण विधि
कर्ण पूरन करने के लिए जिस कान में तेल डालना होता है उसी ओर करवट लेकर लेटाया जाता है और फिर तेल को गर्म करके गुनगुना होने बाद ड्रॉपर की मदद से कान में बूंद -बूंद करके डाला जाता है कान में पूरी तरह से तेल भरा जाता है और यह तेल शुद्ध डालना चाहिए 4 -5 मिनट रखने के बाद इसे cotton की help से निकाल दिया जाता है, आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा से कान से सम्बंधित विकार जैसे कान में खुजली होना ,कान में किसी तरह का दर्द होना सनसनाहट की आवाज आना या कम सुनाई देना ,इसके अलावा आयु के अनुसार इन्द्रिय शक्ति का कम होनाआयुर्वेद में इन सभी समस्याओ के लिए कर्ण पूरन बहुत उत्तम माना जाता है।
कुछ महत्वपूर्ण औषध युक्त तेल है जैसे -विलवादि तेल, क्षार तेल या लहसुन सिद्ध तेल आदि का प्रयोग आयुर्वेद चिकित्सा में किया जाता है जो कान की समस्याओ में बहुत असर कारक होता है।