वायु और रक्त विकार के कारण उत्पन्न होने वाली व्याधि वातरक्त ( गठिया ) में सभी जोड़ों में दर्द और सूजन हो जाती है . कैशोर गुग्गुल वातरक्त की श्रेष्ठ औषधियों में मानी जाती है . वातरक्त रोग में दो – दो गोलियां सुबह शाम महामंजिष्ठादि क्वाथ के साथ सेवन करने से दर्द और सूजन में लाभ होता है
कैशोर गुग्गुल में रक्त शोधक गुण होने के कारण यह चर्म रोगों में प्रभावी कार्य करती है . दाद , खाज , खुजली और अन्य त्वचा रोगों में कैशोर गुग्गुल का गुनगुने पानी अथवा खदिरादि क्वाथ के साथ सेवन करना लाभदायक होता है
गुल्म रोग को साधारण बोलचाल की भाषा मेंवायु का गोला उठना कहते हैं . पेट में वायु विकार के कारण उभार के साथ पेट दर्द होना गुल्म का मुख्य लक्षण है . ऐसीस्थिति में कैशोर गुग्गुलु का गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है .
रक्त विकार ( खून की खराबी ) के कारण चहरे पर छोटी छोटी पिडिकाएं हो जाती हैं जिन्हें सामान्य बोलचाल में कील मुंहासे ( पिम्पल्स ) कहा जाता है . आयुर्वेद मे इसे मुख दूषिका और यौवन पिडिका कहा गया है . कील मुंहासे होने पर कैशोर गुग्गुलु का सेवन करने से पिम्पल्स मेंलाभ होता है .
शोथहर गुण के कारण संधियों एवं शरीर के अन्य हिस्सों मे आयी सूजन में कैशोर गुग्गुलु के सेवन से लाभ होता है