स्वर्णप्राशन एक वैदिक संस्कार है ,जिसका वर्णन आयुर्वेद के ग्रंथो में मिलता है '
यह संस्कार छोटे शिशुओं के लिए करवाया जाता है , जो उनके Immune system
को स्वस्थ रखता है,और रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायता प्रदान करता है।
स्वर्णप्राशन में मुख्य तीन औषध है -१ स्वर्णभस्म ,२ घी ,३ शहद और विभिन्न
औषधियो से मिलकर बना है।
स्वर्णप्रशन किसे करवायें ?
W.H.O (World helth organisation )/ विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार छ:/६ माह तक
के शिशुओं को माँ का दूध ही पिलाना चाहिए ,जो अति आवश्यक भी है ,छ: माह पूर्ण होने
के बाद से लेकर 16 वर्ष तक के बच्चों को पिलाया जा सकता है। और इसे कम से कम
6 माह तक बच्चों को करवाना चाहिए ,और इसे अधिकतम इसे 12 -16 वर्ष तक करवा
सकते है।
समय /अवधि (कब करवाना चाहिए )/कैसे :-
स्वर्णप्राशन को हर एक माह के पुष्य नक्षत्र में किया जाता है ,क्योंकि उस
समय स्वर्ण का absoption पुष्य नक्षत्र में शतप्रतिशत होता है। जो कि हमारे पेट
में न जाकर Buccal cavity में Absorb (अवशोषित ) हो जाता है , इसीलिए इसे जीभ
के नीचे 2 बूँद (drops) डाली जाती है और यह बच्चों को खली पेट दिया जाता है।
स्वर्णप्राशन के फायदे :-
इसमें स्वर्ण (सोना )/ gold की मात्रा होने के कारण बुद्धिवर्धक (brain) का विकास करने
में बहुत लाभदायक साबित होता है जोकि बच्चो में एकाग्रता ,और बार -बार होने वाली
एलेर्जी ,infection से बचाता है,
इसके अतिरिक्त बच्चो में होने वाले त्वचा (स्किन )से और पाचन संबंधी विकारों
,उनके शारीरिक विकास में बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है।