नस्य विधि (nasal medication)जो औषधि नाक के रास्ते से ग्रहण की जाती है उसे नस्य कहते हैं।यह पंचकर्म की एक विधि है जिससे शरीर के दोषों को दूर किया जाता है।
शरीर की इन शुद्धियों में सहायक है -
शरीर की शुद्धि के लिए जिस प्रकार वमन - विरेचन आदि है ,उसी प्रकार ग्रीवा और ऊपरी भाग की शुद्धि के लिए तथा रोगादि की शांति के लिए नस्य (nasal medication) बहुत जरूरी है। यह जन्म से ही करने का विधान है। औषध और औषध -सिद्ध दवाई को नासमार्ग से देने की क्रिया को ही नस्य कहते हैं।
नस्य के दो भेद हैं -
1- रेचन -रेचन नस्य दोषों का खींचकर बाहर निकालने वाला है।
2-स्नेहन -दोषों तथा धातुओं स्निग्ध और पुष्ट करने वाला है।
कफज रोग सुबह (morning),पित्तज (afternoon) और वातज में शाम (evening) को नस्य का विधान है। लेकिन कोई विशेष रोग या इमरजेंसी हो तो रात (night) को भी दे सकते हैं।
लाभ -
तृष्णा और मुख दोष (thirst and mouth diseases) से से पीड़ित , बालक और वृद्ध को नस्य दिया जाता है नस्य सेवन से हँसुली के ऊपर के अंगो का रोग ,बालों का समय से पहले सफ़ेद होना दूर हो जाते हैं और sense organs (इन्द्रियों) में अधिक शक्ति आती है। बहेड़े की मज्जा ,नीम का बीज ,गम्भारी फल की मज्जा ,हरड़ के मज्जा ,शाखाकोट के बीज तथा लाल गुंजा इन में से किसी एक तेल का नस्य सफ़ेद बालों को काला कर देता है।